शनिवार, 1 अगस्त 2009

सपना और अपना

पल ने पलकों पर राज किया
आँखों को सपनो के नाम किया,
एक आता टूट जाता ,फ़िर दूजा
वो भी टूट जाता .......सिलसिला चलता रहा ,
आते रहे जाते रहे
फ़िर जिंदगी ने नया जन्म लिया
नये लोगो के बीच ला कर खड़ा किया ,
आँखों ने फ़िर से छेडी सपनो की लड़ी
जो एक नया था,उसे पहनाई हथकडी ,
समां लिया सपनो के साथ उसे भी आँखों मे
फ़िर एक दिन डोलने लगा सपना
आंखे भर आई ...दिल ने जोर -जोर से आवाज लगायी
जाता रहा सपना और पीछे रहे गया अपना

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें